प्रेम सबसे बड़ा है

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प्रेम के स्वरूप में, परमेश्वर ने दुनिया के कोने-कोने में नबियों को भेजा है, और सारी पृथ्वी पर सुसमाचार का प्रचार किया जा रहा है। जब भी विभिन्न देशों, संस्कृतियों और भाषाओं के सदस्य एकजुट होते हैं, तो उनकी बातचीत, एक दूसरे के प्रति दया और करुणा से चिह्नित होती है। इस एकता को देखने से एकता की गहरी भावना को बढ़ावा मिलता है, और यह पुष्टि होती है कि परमेश्वर की संतान के रूप में, प्रेम के बंधन में, हम अपने बीच प्रेम का खजाना साझा करते हैं।

प्रेम, सबसे बड़ा है। बाइबल कहती है, “जो कोई प्रेम करता है, वह परमेश्‍वर से जन्मा है और परमेश्‍वर को जानता है। जो प्रेम नहीं रखता वह परमेश्‍वर को नहीं जानता, क्योंकि परमेश्‍वर प्रेम है”(1यूह 4:7-8,16)। यदि हम परमेश्वर को नहीं जानते, तो हम बचाए नहीं जा सकते(2थिस 1:7-9)। बाइबल कहती है कि हम एक दूसरे से प्रेम करने के द्वारा मृत्यु से पार होकर जीवन में पहुंचे हैं, और जो अपने भाई से जिसे उसने देखा है प्रेम नहीं रखता, तो वह परमेश्‍वर से भी जिन्हें उसने नहीं देखा प्रेम नहीं रख सकता(1यूह 3:14-16; 4:20-21)। जब हम परमेश्वर के प्रेम को जानते हैं, तो हम परमेश्वर की संतान बन जाते हैं। परमेश्वर प्रेम हैं, और उनकी संतान भी प्रेम हैं।

पिता ने मृत्यु के क्षण तक हमसे प्रेम किया। पापी संतानों को नरक की सजा से छुड़ाने और उन्हें स्वर्ग की ओर ले जाने के लिए प्रेम करते हुए, उन्होंने अपने पहले आगमन पर यीशु के नाम से और इस पृथ्वी पर अपने दूसरे आगमन पर आन सांग होंग के नाम से शरीर धारण किया। उन्होंने स्वयं को दीन किया और बहुत से लोगों की सेवा करके उन्हें बचाया(फिल 2:2-7; मर 10:43-45)। भले ही उन्होंने लंबे समय तक खुद को बलिदान किया और सभी प्रकार की कड़ी मेहनत की, फिर भी उन्होंने एक के बाद एक जीवन बचाने की खुशी से मुस्कुराना कभी बंद नहीं किया। उन्होंने प्रेम का एक उदाहरण दिखाया ताकि हम भी वैसा ही करें(यूह 13:15, 34)। बहुतों को बचाने के लिए, हमें सेवा पाने के बजाय सेवा करनी चाहिए, और हमें स्वयं को बलिदान करना चाहिए। प्रेरित पौलुस, जिसके पास प्रचुर ज्ञान, धन और अधिकार था, ने एक सेवक के रूप में स्वयं को दीन किया और बहुत से लोगों को सुसमाचार सुनाया। उसने परमेश्वर की बुलाहट का उत्तर देने के बाद, इस प्रक्रिया में कई बलिदान और भारी पीड़ा को सहन करते हुए पुनःजन्म का अनुभव किया(1कुर 9:19)।

स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए, हमें आत्मिक रूप से पुनःजन्म लेना चाहिए(यूह 3:3), अहंकार, दूसरों को आहत करना और आत्म-केंद्रितता छोड़कर ऐसा प्रेम अपनाना चाहिए जो खुद से ज्यादा दूसरों की भलाई को प्राथमिकता देता है। हमें स्वर्ग की चीजों के बारे में बहुत अधिक सोचना चाहिए और परमेश्वर की संतान के अनुरूप आचरण रखना चाहिए(कुल 3:1; यूह 8:39)। आइए हम नए सिरे से जन्म लें, एक दूसरे को अनुग्रहपूर्ण शब्दों से प्रोत्साहित करें और सांत्वना दें, और गपशप या चोट पहुंचाने वाली बातों से दूर रहें (इफ 4:22-29)। परमेश्वर ने हमें नई वाचा के फसह के द्वारा अनन्त जीवन दिया, और हमें उन परमेश्वर को अपने अन्दर रखने की अनुमति दी है जो जीवन के वृक्ष की वास्तविकता हैं। इसलिए हमें, जो परमेश्वर की आराधना करते हैं, पवित्र और सुंदर कार्य करना चाहिए(यूह 6:53-56; मत 26:17-28)। यदि हम परमेश्वर के वचन के अनुसार जीएंगे, तो हम फिर से स्वर्गीय संतानों के रूप में जन्म लेंगे। जैसा कि बाइबल में प्रेम के बारे में लिखा है, आइए हम क्रोध न करें, अशिष्ट व्यवहार न करें, या अपनी बड़ाई न करें, बल्कि परमेश्वर के बारे में अधिक बड़ाई करें(1कुर 13:1-13; गल 6:14)।

प्रेम की इस नींव पर, और भी बड़ा प्रेम मौजूद है जिसकी परमेश्वर हमसे मांग करते हैं। यीशु ने कहा, “तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन और अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख, और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” उसके बाद, उन्होंने उस दयालु सामरी का दृष्टान्त सुनाया जिसने डाकुओं द्वारा लूटे गए एक व्यक्ति को बचाया(लूक 10:25-37)। सबसे बड़ा प्रेम मरती हुई आत्माओं को बचाना है, और ऐसा करने के द्वारा ही हम अनन्त जीवन प्राप्त कर सकते हैं। यीशु ने पतरस से पूछा, “क्या तू मुझ से प्रेम रखता है?” फिर, यीशु ने कहा, “मेरी भेड़ों को चरा,” और उसे अनन्त जीवन की रोटी साझा करते हुए प्रेम दिखाने का आग्रह किया(यूह 21:15)।

परमेश्वर पापियों की अगुवाई पश्चाताप की ओर करने से बहुत प्रसन्न होते हैं(लूक 15:7)। इसलिए वह स्वयं स्वर्ग के राज्य से खोए हुए पापियों को खोजने और उनका उद्धार करने के लिए इस पृथ्वी पर आए(लूक 19:10; मत 9:13)। यदि हम उस प्रेम को महसूस करते हैं, तो हमें परमेश्वर की संतान के रूप में जो पूरी दुनिया से अधिक बहुमूल्य अनन्त जीवन प्राप्त करती हैं और स्वर्ग के राज्य को वंशागत करती हैं, परमेश्वर का कार्य करना चाहिए

आइए हम, परमेश्वर द्वारा दिए गए जीवन के भोजन अर्थात् नई वाचा के फसह को उन लोगों के साथ साझा करें जो विपत्तियों और पाप से मर रहे हैं। सुसमाचार का प्रचार करते समय के दु:ख और क्लेश उस महिमा के सामने, जो हम पर प्रगट होनेवाली है, कुछ भी नहीं हैं(रो 8:18)। परमेश्वर, जो प्रेम है, ने हमें परमेश्वर की संतान बनने का अधिकार दिया है ताकि हम उन्हें पिता कह सकें। और उन्होंने हमें अनंत जीवन और स्वर्ग का सुंदर राज्य प्रदान किया है। इसलिए आइए हम प्रेम के द्वारा बहुत सी आत्माओं को परमेश्वर की ओर ले आने का प्रयास करें।