विश्वास जो एकता को अभ्यास में लाता है

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सुसमाचार के साथ कठिनाइयां आती हैं। जिस प्रकार एक बच्चे को जन्म देना और उसकी परवरिश करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है, उसी प्रकार एक आत्मा को बचाना भी, जो सुसमाचार का कार्य है, एक कठिन कार्य है। फिर भी, इसके सकारात्मक परिणाम के कारण, सुसमाचार को अक्सर एक अच्छे दुःख के रूप में वर्णित किया जाता है।

परमेश्वर के लोगों के रूप में पुनःजन्म लेने की प्रक्रिया में, काफी पीड़ा शामिल होती है। चूंकि सभी मनुष्य अपने गंभीर पापों के कारण स्वर्ग से नीचे आए, इसलिए उन पापों के दाग बिना दर्द के नहीं हटाए जा सकते। पापों से शुद्ध किए जाने की पीड़ा को सहने के द्वारा, कोई परमेश्वर के स्वरूप में बदला जा सकता है और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता है। पारस्परिक रूप से लाभकारी संबंध होने के बावजूद, जहां एक-दूसरे के विकास को बढ़ावा मिलता है, कभी-कभी दृष्टिकोणों में अंतर के कारण मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं।

परमेश्वर ने हमें “मसीह के समान स्वभाव रखने” और “अपने हृदयों को मसीह के हृदय में बदलने” का निर्देश दिया है। आत्माओं के उद्धार के लिए, हमें उस स्वार्थी सोच से बदलने की आवश्यकता है जिसमें केवल तब राहत महसूस होती है जब हमारी राय स्वीकार की जाती है, और उसकी जगह हमें परमेश्वर के समान आत्म-बलिदानी मनोवृत्ति अपनानी चाहिए। जब परमेश्वर के लोग एकजुट होते हैं तो यह परमेश्वर को कितना प्रसन्न करता है! परमेश्वर उन लोगों को आशीष और अनन्त जीवन देने का वादा करते हैं जो एकजुट हैं(भज 133:1-3)। स्वर्ग जाने की इच्छा के साथ, हमने आज तक आत्माओं के उद्धार के लिए अपना हृदय, मन और प्रयास समर्पित किया है। इसलिए हमें एक दूसरे के साथ एकजुट होना चाहिए।

लोगों में, कोला की बोतल जैसे व्यक्तित्व वाले और पानी की बोतल जैसे व्यक्तित्व वाले लोग होते हैं। जब कोला की बोतल हिलाई जाती है, तो वह “पॉप” आवाज के साथ फट जाती है और आसपास खड़े लोगों पर भी छींटे मारती है। इसके विपरीत, पानी की बोतल को हिलाने पर भी न तो उसमें बुलबुले बनते हैं और न ही वह दूसरों के लिए कोई परेशानी उत्पन्न करती है। आइए हम कोला की तरह जल्दबाज और अधीर व्यक्तित्व को न अपनाएं, बल्कि पानी के समान एक शांत और धीर स्वभाव विकसित करें।

हमारे भीतर परमेश्वर के पवित्र आत्मा के साथ-साथ एक पापमय स्वभाव भी है, जो आवेगों का विरोध नहीं कर पाता, जिससे क्रोध और कलह पैदा होता है। हमें पवित्र आत्मा के अनुसार चलना चाहिए(गल 5:13-16)। भले ही कोई आपकी भावनाओं को ठेस पहुंचाए, कृपया उसे सेवा करने के मन से क्षमा करें। जब आप दूसरों को अपने से बेहतर समझते हैं, तो आप उनकी सेवा कर सकते हैं। बाइबल कहती है कि “यदि तुम दूसरों के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेंगे”(मत 6:14)। चूंकि परमेश्वर ने कहा कि स्वर्ग देखने के लिए हमें नए सिरे से जन्म लेना चाहिए, उसी तरह स्वर्ग जाने के लिए, हमें पृथ्वी की अभिलाषाओं को त्यागना चाहिए और पवित्र आत्मा का पालन करना चाहिए, कलह के स्वभाव से सद्भाव और एकता के स्वभाव में बदलना चाहिए।

परमेश्वर यह परखने के लिए कि आप बड़े पात्र हैं या नहीं, आपको उनके बगल में रखते हैं जो आपको तंग करते हैं। यदि केवल अच्छे सदस्य ही हैं, तो आपके पास एक महान पात्र बनने का कोई अवसर नहीं होगा। यदि आप अपने को परेशान करने वालों के साथ धैर्यवान बनें और प्रेम के साथ उनकी कमियों को ढकें, तो आप स्वर्ग के राज्य में राज–पदधारी याजक बनेंगे।

हम एक देह हैं। एक देह में जिसका सिर मसीह है, कुछ सदस्य नाक, कान, भौहें, हाथ और पैर की भूमिका निभाते हैं, लेकिन वे सभी बहुमूल्य अंग हैं(1कुर 12:12-27)। दूसरों का तिरस्कार करने या अपने बारे में डींग मारने की कोई आवश्यक्ता नहीं है। परमेश्वर नम्र पैरों को भी महत्व देते हैं, जैसा कि वह कहते हैं, “उनके पांव क्या ही सुहावने हैं जो शुभ समाचार लाते हैं!”(रो 10:13-15)।

क्रोधित होने पर भी, हमें धैर्य रखना चाहिए और पहले यह सोचना चाहिए कि, ‘क्या स्वर्गीय पिता को मेरा व्यवहार प्रसन्न लगेगा या चिंताजनक?’ हमें पापमय प्राणियों से परमेश्वर के सुंदर स्वरूप में बदलने के लिए, परमेश्वर स्वयं इस पृथ्वी पर आए। जब हम मसीह के बलिदानी मन को अपनाते हैं, जिन्होंने परमेश्वर होते हुए भी दास का रूप धारण किया और मनुष्य के समान बन गए, तो हम एकजुट हो सकते हैं और स्वर्ग में प्रवेश कर सकते हैं।

हम पवित्र आत्मा की इच्छा के अनुसार स्वर्गीय आत्मिक मंदिर में आपस में जुड़कर बनाए जा रहे हैं(इफ 2:19-22)। परमेश्वर आपको एकजुट होने और स्वर्ग में प्रवेश करने के लिए प्रेरित करते हैं, इसलिए यह आवश्यक है कि आप एकजुट होने से इनकार न करें। यदि आपका चरित्र खूबसूरती से बदलता है, तो आप स्वर्गदूतों की तरह बनेंगे और स्वर्ग के राज्य में जाएंगे। यह ध्यान में रखते हुए कि परमेश्वर अपनी संतानों के पापमय स्वभाव को अपनी महिमामय देह के समान बदल देंगे(फिल 3:17-21), मैं आशा करती हूं कि आप परमेश्वर की संतानों के योग्य एकता में रहें और अच्छे कर्मों के माध्यम से एक उत्तम उदाहरण बनकर सेवा करें।